सुपरसॉनिक एयरक्राफ्ट्स से संभव हो सकता है 2 घंटे में धरती पर कहीं भी पहुंचना

इसकी टॉप स्पीड लगभग 1,500 किलोमीटर प्रति घंटा की है और इससे न्यूयॉर्क और लंदन के बीच ट्रैवल की अवधि घटकर लगभग तीन घंटे 30 मिनट कह रह जाएगी

दुनिया के पहले सुपरसॉनिक कमर्शियल एयरलाइनर Concorde की फाइनल फ्लाइट के लगभग 20 वर्ष बाद एविएशन इंडस्ट्री बहुत फास्ट एयर ट्रैवल के दौर में एंट्री करने जा रही है। अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA का एक्सपेरिमेंटल सुपरसॉनिक एयरक्राफ्ट, X-59 अपनी पहली टेस्ट फ्लाइट के लिए तैयार है। हालांकि, Concorde की तुलना में इसका साइज और स्पीड कम है।

इसकी टॉप स्पीड लगभग 1,500 किलोमीटर प्रति घंटा की है और इससे न्यूयॉर्क और लंदन के बीच ट्रैवल की अवधि घटकर लगभग तीन घंटे 30 मिनट कह रह जाएगी। ब्रिटेन की सिविल एविएशन अथॉरिटी (CAA) की ओर से प्रकाशित एक रिसर्च में बताया गया है कि 2033 तक लंदन से सिडनी की फ्लाइट में केवल दो घंटे लगेंगे। इस फ्लाइट की मौजूदा अवधि लगभग 22 घंटे की है। सबऑर्बिटल फ्लाइट्स बिलिनेयर Jeff Bezos की Blue Origin और Richard Branson की Virgin Galactic की ओर से इस्तेमाल किए जाने वाले रॉकेट्स के समान होती है। ये फ्लाइट्स लगभग 5,632 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड पर ऑपरेट करती हैं।

उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क से शंघाई की फ्लाइट में मौजूदा 15 घंटे के बजाय केवल 39 मिनट लग सकते हैं। इसके अलावा न्यूयॉर्क से लंदन की यात्रा एक घंटे से कम में की जा सकती है। X-59 में क्वाइट सुपरसॉनिक टेक्नोलॉजी भी मौजूद है जिससे साउड बैरियर को तोड़ने से बनने वाले सॉनिक बूम को सॉनिक थंप में तब्दील किया जा सकता है।

NASA के अनुसार, “इससे एयरक्राफ्ट साउंड की स्पीड से भी तेज रफ्तार से उड़ता है। X-59 का आकार इस तरह का है जिससे शॉकवेव्स को एक साथ आने से रोका जाता है, जिससे अन्य सुपरसॉनिक एयरक्राफ्ट से प्रोड्यूस होने वाले सॉनिक बूम के बजाय हल्का सॉनिक थंप बनता है।” इस एयरक्राफ्ट के पूरी तरह असेंबल होने के बाद यह लगभग 30.5 मीटर लंबा होगा और इसके विंग्स की चौड़ाई लगभग 9 मीटर की होगी। इसकी ऊंचाई लगभग 4.25 मीटर तक रहेगी। यह लगभग 55,000 फीट की ऊंचाई तक जा सकेगा। हालांकि, इसकी कमर्शियल फ्लाइट्स शुरू होने में कई वर्ष लग सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में Blue Origin जैसी स्पेस ट्रैवल से जुड़ी कंपनियों ने रॉकेट बनाने की टेक्नोलॉजी में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कमर्शियल फ्लाइट्स में करने की संभावना भी तलाशी जा रही है।