Raksha Bandhan 2023 हिस्ट्री माता लक्ष्मी से लेकर रानी कर्णावती तक, ऐसी कई कथाएं हैं जिन्होंने बार-बार रक्षासूत्र या रक्षाबंधन से इतिहास रचा है. भाई ने बहन के लिए जान की बाजी लगाई है।
Raksha Bandhan 2023 History: रक्षाबंधन का त्योहार हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इस साल देशभर में 30 और 31 अगस्त को भाई-बहन के पवित्र पावन पर्व मनाया जा रहा है. इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई उसकी रक्षा का वचन देता है. कहा जाता है कि रक्षाबंधन का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है, लेकिन आपको जानकर हैरानी हो सकती है इसका इतिहास इससे भी काफी पुराना है. आइये जानते हैं इस रक्षासूत्र पर्व से जुड़ी 5 पौराणिक कथाएं।
राजा बलि और लक्ष्मी माता से जुड़ी कथा: स्कंध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है. दानवेंद्र राजा बलि का अहंकार चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि की मांग की. भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप लिया और राजा बलि को रसातल में भेज दिया. बलि ने अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया. भगवान को वापस लाने के लिए नारद ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया. लक्ष्मीजी ने राजा बलि को राखी बांध अपना भाई बनाया और पति को अपने साथ ले आईं. उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी.
इंद्राणी ने अपने पति को बांधा था रक्षासूत्र: रक्षाबंधन के बारे में भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है. मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में वृत्रासुर नाम का एक असुर था जिसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया था. उसे वरदान प्राप्त था कि इस समय तक बने किसी अस्त्र-शस्त्र का असर नहीं होगा. तब महर्षि दधिचि ने देवताओं को जीत दिलाने के लिए अपना शरीर त्याग कर दिया और उनकी हड्डियों से अस्त्र-शस्त्र बनाए गए. साथ ही वज्र नाम का एक अस्त्र भी बनाया गया जिसे इंद्र को दिया गया. युद्ध से पहले इंद्र अपने गुरु बृहस्पति के पास गए. युद्ध पर जाने से पहले इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति को रेशम का धागा बांध दिया. संयोग से वह श्रावण महीने की पूर्णिमा तिथि थी. युद्ध में वृत्रासुर की हार हुई और देवताओं ने फिर से स्वर्ग पर अधिकार स्थापित कर लिया था।
महाभारत की कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था, तब उनकी उंगली में चोट लग गई थी. उनकी उंगली से खू बहता देखकर द्रौपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दिया. कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था. सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब द्रोपदी ने वासुदेव श्रीकृष्ण को याद किया था और उन्होंने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
महाभारत काल की दूसरी कथा: महाभारत काल में कृष्ण और द्रोपदी की कथा के बारे में लगभग सभी लोग जानते हैं लेकिन युधिष्ठिर और उनके सैनिकों की कथा के बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे. कहा जाता है कि पांडवों को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा योगदान था. महाभारत युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण के सुझाव पर सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधें थे. ताकि उनकी विजय सुनिश्चित हो सके. युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और विजयी बने. यह घटना भी सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर ही घटित हुई मानी जाती है।
रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी: देश में एक समय राजपूत मुस्लिम आक्रमण के खिलाफ लड़ रहे थे. अपने पति राणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ की कमान रानी कर्णावती के हाथों में थीं. उस समय गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर दूसरी बार आक्रमण किया था. कर्णावती ने तब हुमायूं से मदद मांगने लिए उसे राखी भेजी. हुमायूं उस समय एक युद्ध के बीच में था, मगर रानी के इस कदम ने उसे भीतर से छू लिया. हुमायूं ने अपनी फौज फौरन मेवाड़ के लिए भेज दी. दुर्भाग्यवश, उसके सैनिक समय पर नहीं पहुंच पाए और चित्तौड़ में राजपूत सेना की हार हुई. रानी ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर (खुद को आग लगा ली) कर लिया. लेकिन हुमायूं की सेना ने चित्तौड़ से शाह को खदेड़ कर रानी के पुत्र विक्रमजीत को गद्दी सौंप दी और अपनी राखी का मान रखा.