आज सोमवार है, इसलिए भगवान शिव की पूजा की जाती है। शिव भगवान को देवताओं में महादेव कहा जाता है। हम अक्सर उनकी हर तस्वीर में देखते हैं कि उन्होंने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है। आइए जानते हैं आखिर क्यों भोलेनाथ को चंद्रमा को अपने माथे पर चंद्रमा को धारण करना पड़ गया था।
हिंदू धर्म में सर्वाधिक पूज्यित देवताओं में से एक हैं महादेव। उनके नाम की तरह उनकी महिमा भी प्रसिद्ध है। सोमवार को ग्रहों में चंद्र देव की पूजा होती है, और हर सोमवार लोग महादेव की पूजा करते हैं। भगवान शिव की हर प्रतिमा में उन्हें मस्तक पर चंद्रमा लगा हुआ देखा जा सकता है। शास्त्रों में भी भोलेनाथ की छवि में चंद्रमा को अपने मस्तक पर रखा गया है। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि ऐसा क्यों है? यह जानने के लिए आपको पूरी कहानी पढ़नी चाहिए।
चंद्र देव को दक्ष प्रजापित ने दिया था श्राप
पौराणिक कहानी कहती है कि चंद्र देव ने दक्ष प्रजापित की 27 कन्याओं से विवाह किया था। दरअसल, ये वही 27 कन्याएं हैं जो नक्षत्र कहलाते हैं। रोहणी को वह सबसे अधिक पसंद करता था। इसलिए बकी की २6 कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से इस बारे में बताया। दक्ष प्रजापति यह जानकर गुस्सा हो गया और चंद्र देव को श्राप दे डाला। दक्ष प्रजापति ने अपना दंड फिर से नहीं लिया, जिससे चंद्र देव को रोग लग गया और 16 कलाएं धीरे-धीरे खत्म होने लगी।
नारद जी ने दिया महादेव की स्तुति की सलाह
यह जानकर नारद ने उन्हें भोलेनाथ की शरण में जाने का तरीका बताया और उन्हें शिव की प्रशंसा करने को कहा। नारद ने बताया था कि चंद्र देव ने ऐसा ही किया। चंद्र देव की आराधना करने से महादेव प्रसन्न हो गए और उनको प्रदोष काल में जीवित रहने का वरदान दिया। इस तरह वह एक नया जीवन पाकर पूर्णिमा तक फिर से उठने लगे। इस तरह चंद्र देव को दक्ष प्रजापति की सजा से छुटकारा मिला और शिव की कृपा मिली।