कानपुर की एल्गिन मिल

हमारा प्यारा कानपुर जिसे औधोगिक केंद्र के रूप में जाना जाता है जिसे एशिया के मेनचेस्टर भी जाना जाता है | यहां की भौगोलिक दशा और गंगा के किनारा जो की किसी उद्योग के लिए बहुत अनूकूल है जिस  कारण अंग्रेजो का महत्वपूर्ण स्थान था और शहर में एल्गिन मिल, स्वदेशी मिल व लाल इमली मिल चलायी गईं, जो विश्वभर में कपड़ा उत्पादन के लिए मशहूर थीं।

एल्गिन मिल जो की एक कपडा मिल थी  जिसकी स्थापना अंग्रेजो द्वारा साल 1864 में हुई थी यह ब्रिटिश इंडिया कॉर्प की सहायक कंपनी के रूप में काम करती थी. |

1864 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के पिता एडवर्ड एल्गिन के नाम पर मिल की स्थापना की गई थी। यहां बनने वाली साठिया चद्दर, तौलिया, बेड शीट, 660 नंबर चादर, जींस का कपड़ा, लंकलाट के बने कपड़ों की तूती देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी बोलती थी।

कभी इस मिल की बनी तौलिया लंदन की महारानी को खूब भाती थी। यहां का बना ज्यादातर माल लंदन एक्सपोर्ट होता था।

आजादी के बाद 1947 से 1971 तक कम्युनिस्ट पार्टी के एसएम बनर्जी कानपुर के सांसद थे। उन्होंने केंद्र सरकार के साथ मिलकर इन मिलों को बढ़ाया। 1974 तक शहर की इन मिलों ने पूरी दुनिया में शहर का कद बढ़ाया | देश में इमरजेंसी लगने के बाद से ही कानपुर को ग्रहण लगना शुरू हो गया।

मिलो के प्रबंधन की जिमेदारी बीआईसी प्रबंधन (ब्रिटिश इंडिया कॉर्प ) की थी जिसमे लापरवाही की गयी साथ ही भृष्टाचार का होना  जिसने मिल के भविष्य को अंधकार में कर दिया  और बीआईसी ने इन मिलों के लिए बैंको से लोन लिया गया जिसे समय से न चुकाना जिस कारण मामला कोर्ट में गया और  सम्पति बिक्री का फ़ैसला कर दिया गया|

कानपुर को उत्तर भारत के मैनचेस्टर की पहचान दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली एल्गिन मिल सरकारों की अनदेखी और अफसरों की लूटखसोट का शिकार हो गई।

एल्गिन मिल का शहर में  जलवा 

15 हजार मजदूर करते थे काम

15 हजार से अधिक मजदूर काम करते थे। जब मिल में शिफ्ट बदली जाती थी तब मजदूरों का रेला निकलता था। ग्रीन पार्क छोर से लेकर नवाबगंज छोर की सड़कों पर दुकानें सज जाती थीं  जो की शहर में एक मेले का अहसास कराती थी | ग्रीनपार्क छोर से लेकर नवाबगंज छोर की सड़कों पर चाय, खोमचों की दुकानें सजी रहती थीं। लेकिन इसके बाद से मिल की हालत खस्ता होती चली गई। तत्कालीन चेयरमैन ने मिल चलाने के लिए 9 बैंकों से करोड़ों का लोन लिया। लेकिन मिल चल नहीं पाई। यही लोन मिल बंदी का कारण बना। 1992 को मिल को बीमार घोषित कर दिया गया। 1994 से मिल बंदी की आधिकारिक घोषणा कर दी गई।

8 मई 2001 को अटल सरकार मिल में कर्मचारियों ने वीआरएस लेकर इस शर्त को माना कि जब मिल चलेगी तो उन्हें रोजगार दिया जाएगा। इसके बाद न तो मिल चली न रोजगार मिला। मिल चलाने के लिए करीब 15 सालों से संघर्ष कर रहे मजदूर यहां अभी प्रतिदिन धरना देते हैं।