गोरखपुर की जमीं को आज किसी की पहचान का मोहताज़ नहीं होना पड़ता। योगी जी और मठ की बातें आज पुरे देश में लोगो के बिच चर्चा का विषय बानी रहती है। उसी गोरखपुर की धरती में एक ऐसे मुख्यमंत्री सामने आये जिनको उस समय का कॉन्ट्रैक्ट मुख्यमंत्री कहा जाता था। कहा जाता है की राजीव गाँधी ने इन्हे यूपी में कुछ विशेष कामो का जिम्मा सौपते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई थी ।
कौन है वीरबहादुर सिंह
1974 में विधान परिषद के लिए चुनाव था। कांग्रेस पार्टी से हरिशंकर तिवारी चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन उनकी अपनी पार्टी के लोग उन्हें पसंद नहीं करते थे और उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं मिल रहा था। तब वीर बहादुर सिंह नाम के एक व्यक्ति ने मदद करने का फैसला किया और यादवेंद्र सिंह से किसी नए व्यक्ति का समर्थन करने को कहा। उन्होंने बस्ती से शिवहर्ष उपाध्याय को हरिशंकर के खिलाफ खड़ा किया। अंत में शिवहर्ष मात्र ग्यारह वोटों से जीत गए! हरिशंकर को हार पसंद नहीं थी और उन्होंने केस को हाईकोर्ट में ले गए। भले ही शिवहर्ष का कार्यकाल खत्म हो गया, लेकिन कोर्ट केस चलता रहा। इसके बाद हरिशंकर और वीर बहादुर के बीच मनमुटाव हो गया और फिर दोनों में बनती नहीं रही। लेकिन फिर भी वीर बहादुर के लिए यह बड़ी जीत थी।
वीर बहादुर ने राजनीति में अपना सफ़र छात्र जीवन से ही शुरू कर दिया था। उनके अच्छे दोस्त ओम प्रकाश पांडे और बृज भूषण सिंह ने भी छात्र राजनीति से ही शुरुआत की थी, इसलिए वे सभी राजनीति के तौर-तरीके जानते थे। 1980 में वे वीपी सिंह की सरकार में मंत्री बने। उसके बाद वे 24 सितंबर 1985 से 24 जून 1988 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। बाद में वे राजीव गांधी की सरकार में संचार मंत्री भी बने।
वी पी सिंह से थी टकरार
कांग्रेस में दो लोग ऐसे थे जो वीपी सिंह को पसंद नहीं करते थे, नाम था सुनील शास्त्री और संजय सिंह। उन्हें वीपी सिंह का समर्थक माना जाता था। जब भी वीर बहादुर वीपी सिंह के बारे में बात करते थे, तो वे बहुत परेशान हो जाते थे और अपना संयम खो देते थे। वीर बहादुर, जो वीपी सिंह के कार्यकाल में मंत्री हुआ करते थे, वे ऐसी बातें कहते थे, “वीपी सिंह कौन हैं? देखते हैं वे अकेले बैठक करके देखते हैं! कोई भी उनका अनुसरण नहीं करता। वे इस राज्य के अब तक के सबसे कमज़ोर नेता हैं। अगर वे कांग्रेस के किसी उम्मीदवार के खिलाफ़ चुनाव लड़ते हैं, तो सभी को पता चल जाएगा कि वे वास्तव में कैसे हैं।” वैसे, यह जानना ज़रूरी है कि वीर बहादुर के निधन के एक साल बाद ही वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने थे।
कमजोर मुख्यमंत्री और कठोर राजनैतिज्ञ
वीर बहादुर सिंह के शासन काल में 37 जिलों में दंगे हुए। मेरठ के दंगों में 181 लोग मरे। अयोध्या विवाद शुरू हो गया। 16 लाख सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। सिनेमा थिएटरों समेत 29 संस्थानों ने हड़ताल की। राज्य में ऐसा सूखा पड़ा जो पूरी शताब्दी में नहीं पड़ा था। किसानों के नेता महेंद्र सिंह टिकैत के आह्वान पर पूरी ग्रामीण जनता हथियार उठाने के मूड में थी।
परवीर बहादुर के पास हथियार बहुत थे। सत्ता अपने पास रखना उनको आता था। अपने आलोचकों नकवी और संजय सिंह को पार्टी से निकाल दिया। इस्तीफ़ा देने के बाद संजय सिंह ने वीर बहादुर पर तंज कसा कि, ”मैं वीर बहादुर को धन्यवाद करता हूं। उनकी मेहनत के बिना मैंने पार्टी छोड़ी नहीं होती। वे ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनके लिए हम प्रार्थना करेंगे कि वे हमेशा उत्तर प्रदेश की कुर्सी पर बने रहें.” वीर बहादुर ने तो संजय को बहुत पहले से ही वी पी का पिट्ठू घोषित कर रखा था।
कैसे कहलाये कॉन्ट्रैक्ट मुख्यमंत्री :
1985 में लखनऊ के बाहरी इलाके में बाढ़ आई। प्रधानमंत्री राजीव गांधी यहां दौरे पर आये थे। वापस, राजीव गांधी ने अमासी हवाई अड्डे पर गोरखपुर कांग्रेस के प्रमुख के साथ एक लंबी बैठक की। अगले दिन, समाचार पत्र इस तथ्य से भरे हुए थे कि यह व्यक्ति मुख्यमंत्री द्वारा बनाया जा सकता है। अनुमान सही साबित हुआ। तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने इस्तीफा दे दिया और गोरखप्रिय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इस शख्स का नाम था वीर बहादुर सिंह. कहा जाता था कि वो राजीव गांधी के कॉन्ट्रैक्ट चीफ मिनिस्टर थे, जिन्हें कुछ ख़ास कामों के लिए नियुक्त किया गया था।