नागा साधु कैसे बनते है ? नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत रहस्यमयी और कठिन मानी जाती है | जो कि सामान्य व्यक्ति के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण है | इनकी जीवन शैली और नियम अत्यंत विचित्र होते है आइए मुख्य बिंदुओं पर नजर डालते हैं:
नागा साधु बनने की प्रक्रिया:
- अखाड़े में प्रवेश:
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- नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को किसी मान्यता प्राप्त अखाड़े में प्रवेश लेना होता है।
- प्रवेश से पहले अखाड़ा जांच-पड़ताल करता है कि व्यक्ति साधु बनने योग्य है या नहीं।
- प्रवेश के बाद व्यक्ति को ब्रह्मचर्य और संयम का पालन सिखाया जाता है।
- ब्रह्मचर्य व्रत:
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- ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन करना होता है।
- यह प्रक्रिया 6 महीने से लेकर 12 साल तक चल सकती है।
- महापुरुष की उपाधि:
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- ब्रह्मचर्य की परीक्षा पास करने पर व्यक्ति को महापुरुष का दर्जा दिया जाता है।
- इसे प्रतीकात्मक रूप से संसार से मृत्यु की स्थिति माना जाता है।
- इस दौरान साधु को पंचदेव (शिव, विष्णु, शक्ति, गणेश और सूर्य) की दीक्षा दी जाती है।
- व्यक्ति भष्म, लंगोटी , जनेऊ और रुद्राक्ष धारण करता है जो उसके आभूषण मने जाते है
- अवधूत अवस्था:
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- यहां महापुरुष से संन्यासी बनने की प्रक्रिया शुरू होती है
- साधु को स्वयं का पिंडदान और तर्पण करना होता है, जो उसके सांसारिक जीवन की समाप्ति का प्रतीक है।
- इसके बाद साधु वस्त्र का त्याग करता है और भस्म (राख) को अपने शरीर पर लपेटता है।
- संसार और परिवार के लिए वह व्यक्ति मृत हो जाता है. उसका अब एक ही उद्देश्य रहता है- धर्म की रक्षा.
- लिंग भंग प्रक्रिया (विवादास्पद):
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- इस प्रक्रिया में कामवासना से मुक्त होने के लिए लिंग के नीचे की झिल्ली को तोड़ दिया जाता है।
- इसे “टांग तोड़” भी कहा जाता है और यह अंतिम चरण है।
- इसके बाद लिंग कभी उत्तेजित अवस्था में नहीं आता. वह काम, वासना के पार चला जाता है. इससे मुक्त हो जाता है. लिंग भंग के बाद नागा साधु बनने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है|
नागा साधु की विचित्र जीवन शैली:
- संपूर्ण त्याग:
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- नागा साधु हर प्रकार के सांसारिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर देते हैं।
- वह भिक्षा पर निर्भर रहते हैं और भोजन उपलब्ध न हो तो उपवास करते हैं।
- वस्त्रों का त्याग:
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- वस्त्र को सांसारिक जीवन का प्रतीक मानते हुए नहीं पहनते।
- भस्म को शरीर पर लपेटना आध्यात्मिक और तपस्या का प्रतीक है।
- सोने का तरीका:
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- बिस्तर पर सोने के बजाय जमीन पर या खुले आसमान के नीचे विश्राम करते हैं।
- अध्यात्म और धर्म रक्षण:
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- नागा साधु अपने जीवन को धर्म और अध्यात्म की रक्षा के लिए समर्पित करते हैं।
- जरूरत पड़ने पर वे शस्त्र धारण कर धर्म की रक्षा के लिए लड़ते भी हैं।
नागा साधु की ऐतिहासिक भूमिका:
- नागा साधु हमेशा से धर्म की रक्षा के योद्धा रहे हैं।
- आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ा परंपरा शुरू की।
- नागा साधुओं ने कई युद्धों में हिस्सा लिया और धर्म के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
कुंभ और नागा साधु:
- कुंभ मेले में नागा साधुओं का अमृत स्नान सबसे प्रमुख होता है।
- नागा साधु के स्नान के बाद ही अन्य साधु और श्रद्धालु स्नान करते हैं।
- कुंभ समाप्त होने के बाद ये साधु एकांतवास में चले जाते हैं।
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नागा साधुओ के कठिन नियम विचित्र जीवन शैली किसी तपस्या से कम नहीं जो किसी साधारण मनुष्य के लिए अकल्पनी हो सकती है लेकिन यह उनकी गहन आस्था, तप और त्याग का प्रतीक है। उनकी प्रक्रिया और परंपराएं न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी प्रेरणादायक मानी जाती हैं।