प्रमुख सिफारिशे------ कमेटी ने सिफारिश की थी कि नो कॉन्फिडेंस मोशन या हंग असेंबली की स्थिती में ५ साल में से बचे समय के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते है इस रिपोर्ट में सभी राज्यों की विधानसभाओ का कार्यकाल बढाकर 2029 तक करने का सुझाव दिया गया हैं, ताकि लोकसभा के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव कराये जा सके | 191 दिनों में तैयार इस 18,626 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ साझा किए थे जिनमें से 32 राजनीतिक दल 'वन नेशन वन इलेक्शन' के समर्थन में थे.
भारत में एक देश एक चुनाव का इतिहास: · एक देश एक चुनाव का विचार कम से कम 1983 से ही चला आ रहा है, जब चुनाव आयोग ने पहली बार इस पर विचार किया था। हालांकि, 1967 तक, भारत में एक साथ चुनाव कराना एक आदर्श नियम था। · लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए पहला आम चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित किया गया था। · यह प्रथा 1957, 1962 और 1967 में हुए तीन आम चुनावों में भी जारी रही। · हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह चक्र बाधित हो गया। · 1970 में, लोकसभा को समय से पहले ही भंग कर दिया गया और 1971 में नए चुनाव कराए गए। इस प्रकार, पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। लोक सभा और विभिन्न राज्य विधान सभाओं के समय से पहले विघटन और कार्यकाल विस्तार के परिणामस्वरूप, लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के लिए अलग-अलग चुनाव हुए हैं, और एक साथ चुनाव कराने का चक्र बाधित हुआ है।
कमेटी ने कैसे बनाई रिपोर्ट ? 1983 में भारतीय चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव कराए जाने का प्रस्ताव तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार को दिया था। उस समय इंदिरा गांधी ने इसे अस्वीकार कर दिया था। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, 1999 में लॉ कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में ये सिफ़ारिश की थी कि देश में चुनाव एक साथ होने चाहिए, जिससे देश में विकास कार्य चलते रहें। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी इस कमेटी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आज़ाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ़ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे। रिपोर्ट में बताया गया कि 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ साझा किए थे जिनमें से32 राजनीतिक दल 'वन नेशन वन इलेक्शन' के समर्थन में थे।
क्या हैं तर्क ? 'एक देश, एक चुनाव' का समर्थन करने वाले कहते हैं कि चुनावों में ब्लैक मनी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है और अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो इसमें काफी कमी आएगी। इसके अलावा चुनाव खर्च का बोझ कम होगा, समय कम लगेगा और पार्टियों और उम्मीदवारों पर खर्च का दबाव भी कम होगा।
एक देश एक चुनाव का विरोध क्यों? रिपोर्ट में कहा गया कि'एक देश, एक चुनाव' का विरोध करने वालों की चिंता है कि "इसे अपनाना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा। ये अलोकतांत्रिक, संघीय ढांचे के विपरीत, क्षेत्रीय दलों को अलग-अलग करने वाला और राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ाने वाला होगा।" रिपोर्ट के अनुसार इसका विरोध करने वालों का कहना है कि "ये व्यवस्था राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाएगी।"