JK Temple : कानपुर के इस मंदिर में है सकारात्मक ऊर्जा का अपार भंडार, यहां वास्तु के जानकारों को होता ‘अलौकिक अनुभव’

अगर आपको वास्तु शास्त्र में जरा सी भी दिलचस्पी है तो कानपुर जेके मंदिर घूम आइए। आप कहेंगे कि हम वास्तु की किताबों या ऑनलाइन वेबसाइटों के बजाए किसी मंदिर में जाने की सलाह क्यों दे रहे हैं। इसके पीछे की वजह है यहां का लाजवाब वास्तु। किसी भी घर की सुख-समृद्धि में वास्तु का बहुत अहम स्थान होता है। कहते हैं कि सही वास्तु से भरपूर सकारात्मक ऊर्जा मिलती है जो सफलता के लिए जरूरी होती है। जेके मंदिर घूमकर आप दिशाओं और पंच तत्वों के सही संयोजन को सीख सकते हैं। इन्हें आप अपने घर में इस्तेमाल कर सकते हैं।

 

पहले पृथ्वी और अंत में आकाश तत्व

महामहोपाध्याय आदित्य पांडेय बताते हैं कि मंदिर का निर्माण पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश) के सही क्रम से किया गया है। मंदिर का मुख्यद्वार (नजीराबाद थाने की ओर से) से राधाकृष्ण साफ नजर आते हैं। मुख्य द्वार पृथ्वी तत्व होता है। इसके बाद आता है जल तत्व। मुख्य द्वार से होते ही जैसे ही आप थोड़ा आगे बढ़ेंगे तो शानदार फव्वारा आपका मन खुश कर देगा।

इसके बाद मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़कर आप जैसे ही द्वार पर पहुंचेंगे तो यहां आपको यज्ञ आदि के लिए स्थान नजर आएगा। यह तत्व है अग्नि। इसके बाद मंदिर के भीतर दाखिल होते ही आपको बड़ा सा हॉल नजर आएगा। यह सूचक है वायु तत्व का। इसके बाद जब आप सिर ऊपर उठाकर देखेंगे तो विशाल गुंबद आपको नजर आएगा। यह आकाश तत्व है। यानी की सभी का सही क्रम में प्रयोग किया गया। शिखर के ठीक नीचे राधाकृष्णजी विराजमान है। मंदिर में कुल पांच शिखर हैं। इसमें केंद्र शिखर सबसे ऊंचा है।

दिशाओं का भी सही तालमेल

जाने माने वास्तुविद विमल झांझरिया बताते हैं कि कानपुर गंगा तट पर बसा है। जो सड़कें इसके समानंतर बनी हैं उन पर बने भवनों का मुख उत्तर-पूर्व दिशा की है। इसी प्रकार जो सड़कें गंगाजी को पार करती हैं उन पर बने भवनों का मुख उत्तर पश्चिम की ओर है। आप जब इन इमारतों से जेके मंदिर को देखेंगे तो थोड़ा तिरक्षा नजर आएगा। इसकी वजह है इन मकानों में दो दिशाओं का होना।

जब आप जेके मंदिर को देखेंगे तो आपको ज्ञात होगा कि यह सीधी दिशाओं में बना हुआ है। यानी पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। कहीं भी दो दिशाएं एक साथ नहीं हैं। जेके मंदिर का मुख पूरी तरह से पूर्व दिशा में है। मंदिर के केंद्र में स्थापित राधाकृष्ण की मूर्ति पूर्व दिशा की ओर देख रही है। मूर्ति के पीछे पश्चिम दिशा है, बाएं हाथ पर उत्तर और दाहिने पर दक्षिण दिशा है। ऐसे में यहां अपार सकारात्मक ऊर्जा रहती है।